नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!
नमष्कार..!!!आपका स्वागत है ....!!!

08 July, 2010

सागर की व्यथा ...!!-13


एक बूँद पहुंची सागर घर -
हाल-चाल सागर का लेने -
देख- अचंभित ..!!खड़ी मूर्तिवत -
सोच रही यूँ मन में अपने -
बूँद- बूँद से तो सागर बनता -
बनकर सागर भी सागर-
फिर व्यथित क्यों रहता ....?

कहने लगा हंसकर सागर फिर -
विस्तार तुमने देखा -
विस्तार तुमने जाना -
विस्तार तुमने लिया -
सभ्यता तुमने पाई  -
व्यथा भी तो देखो ......
प्रकृति के नियम का -
परिणाम भी तो देखो --

बूँद एक पल को मुस्कुराई -
जब बात समझ में आई -
कहती है सागर से फिर वो-
बुलबुला है मन का -उठता है -
फूट जाता है ----
क्षण भर का आवेग है -
आता है चला जाता है --
सागर सा विस्तार अगर है --
फिर सागर को क्या डर है ॥?

सह जाए प्रारब्ध --
उसे तो सहना है --
मंथन कर ढेरों विष -
फिर अमृत ही बहना है --
अमृत ही बहना है ........!!!!!!

16 comments:

  1. सिसकते साज में किसकी सदा है
    कोई दरिया की तह में रो रहा है . (बशीर बद्र )
    आज पता चला क्यों ?

    ReplyDelete
  2. Great imagination n well expressed...just like drops of heaven..accumulated in the form of verse..grt work maam..keep it up..

    ReplyDelete
  3. कविता का शीर्षक मेरे पिता ने मुझे दिया था -
    उन्हीं की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए ये मेरे मन के भाव हैं -

    ReplyDelete
  4. एक बहुत सुन्दर रचना |मनको छु गई |बधाई
    आशा

    ReplyDelete
  5. वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
    आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
    बधाई.

    ReplyDelete
  6. वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
    आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
    बधाई.

    ReplyDelete
  7. रचना बहुत अच्छी लगी .

    ReplyDelete
  8. मंथन कर ढेरों विष -
    फिर अमृत ही बहना है --

    Bahut sundar abhivyakti !

    ReplyDelete
  9. आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
    बधाई.

    ReplyDelete
  10. Your blessed creativity transcends all contours of immaginative intuition in the domain of innovation. Its subtility is beyond the ambit of wordy appreciation. It benumbs sensitivity but fathoms otherwise unfathomable reality. My compliments for the poetic worthiness.
    regards,
    Ved Prakash Mishra

    ReplyDelete
  11. This Poem Reminds me of Mausiaji!

    ReplyDelete
  12. सह जाए प्रारब्ध --
    उसे तो सहना है --
    मंथन कर ढेरों विष -
    फिर अमृत ही बहना है --
    अमृत ही बहना है ........!!!!!!

    बहुत सुन्दर रचना.... वाह!
    सादर बधाई...

    ReplyDelete
  13. सागर सा विस्तार अगर है --
    फिर सागर को क्या डर है ॥?
    सह जाए प्रारब्ध --
    उसे तो सहना है --
    मंथन कर ढेरों विष -
    फिर अमृत ही बहना है --
    अमृत ही बहना है .

    वाह बेहतरीन

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!